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Tuesday 9 June 2015

शहर बढ़िया है या पहाड़

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गर्मियां अपने चरम पर है... बस बाबा जी भी कभी भी टपक सकते हैं इस गर्मी से... कहा पहाड़ों की ठंडी ठंडी वादियों में जीने के सपने देखने वाले बाबा जी आज हल्द्वानी की इस गरमी में सड़ रहे हैं....
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      ऊपर से हद तब हो जाती है जब साला लाइट काट देते हैं... वेसे ही पंखे में हवा बड़ी मुश्किल से आ रही होती है... ऊपर से लाइट काट के तो हद ही हो गई... नरक जैसे हालत हो जाती है...

      और उस पे सोने पर सुहागा वाली बात ये की साला मच्छरों की मोज आ जाती है... ऐसे घेर लेते हैं साले जैसे किसी हिंदी फिल्म में गुंडे अकेली बेबस लड़की को घेर लेते हैं... इसे इसे सिटी बजाते हैं कमीने और तो और गाने भी गातें है... हाहाहा

      काट काट के साले पूरी बॉडी सुजा देते हैं... खुजा खुजा के बर्बाद कर देते हैं... भई कब आ रहा है मानसून... थोड़ी बारिश ही हो जाती या फिर हवा ही चल जाती यार ठंडी हवा चल जाती....

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      आज कल के लोग पहाड़ छोड़ कर शहरों में आ रहें हैं पर मैं तो साला इस गर्मी से तंग आ कर शहर छोड़ के पहाड़ भागना चाहता हूँ... वेसे भी अब पहाड़ भी तो बहुत आगे बढ़ चुका है.. वहाँ भी विकास हो रहा है... अब अच्छी रोड आगे है... अच्छे स्कूल खुल गये हैं... कॉलेज खुल गये है... मार्किट भी अब बड़े हो गये है.. रोड अच्छी हो जाने के कारण अब सब सामान आराम से पहाड़ों के मार्किट में भी मिल जाते हैं...

      और खास बात रही अच्छी पढाई की तो आज कल शहरों में इतने स्कूल खुल तो गये हैं पर उतने ही पढने वाले भी हैं... तो अच्छे स्कूल में एडमिशन नहीं मिल पता है.... और जिन स्कूल में एडमिशन मिल जाता है उनकी पढाई भी उतनी अच्छी है जितनी यहाँ पहाड़ो के स्कूल में होती है... ऊपर से शहरों में फीस भी जयादा होती है...

      हा पर जो मैं प्रॉब्लम पहाड़ की है वो है रोजगार की समस्या... बस इसी ने बर्बाद कर दिया है पहाड़ को... जिस दिन ये प्रॉब्लम ठीक हो जाएगी न बस उसी दिन पहाड़ फिर से स्वर्ग बन जायेगा....

-    बाबा बेरोजगार 

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